
एन. रघुरामन का कॉलम:कंप्यूटर के युग में विश्लेषणात्मक बुद्धि वाले कर्मचारियों की जरूरत अधिक है
Published at : 2025-07-09 00:30:00
मध्य प्रदेश की 80 वर्षीय गौरा बाई का नाम कम्प्यूटर स्क्रीन पर लाभार्थियों की सूची में आया। गांव के सरपंच और सचिव ने उन्हें जानकारी दी कि उनके नाम से प्रधानमंत्री आवास योजना में एक आवास स्वीकृत हुआ है। चूंकि आवास देने से पहले मौका निरीक्षण होना था, इसलिए गौराबाई को कहा गया कि वह अभी जिस मिट्टी का घर में रह रही हैं, उसे गिरा दें ताकि योजना का लाभ लिया जा सके। उनके सिर पर कोई छत नहीं होनी चाहिए। इसलिए उन्होंने घरवालों की मदद से मिट्टी से बने मकान को ढहा दिया और अपनी विधवा बहू राधाबाई और उसके तीन बच्चों के साथ एक बबूल के पेड़ के नीचे रहने चली गईं। लेकिन ये बात 10 माह पहले की है। हां, आज तक यह अस्सी वर्षीय बुजुर्ग विधवा अपने चार परिजनों के साथ इंदौर से 140 किमी दूर कुक्षी तहसील के लोहारी गांव में उसी पेड़ के नीचे रह रही हैं। पांच लोगों के इस परिवार ने खुले आसमान के नीचे सर्दी, गर्मी झेल ली और अब बारिश झेल रहे हैं, लेकिन सिर पर छत आने के कोई आसार अभी नजर नहीं आ रहे। सरपंच अमर सिंह वास्केल का कहना है कि गौरा के बड़े बेटे ने पहले ही इसी योजना में लाभ ले लिया, लेकिन वह बहुत पहले ही परिवार से अलग हो चुका। और इसके बाद गौरा का नाम लाभार्थियों की सूची में दिखने लगा। अधिकारियों ने गौरा के जॉब कार्ड के आधार पर उनके आवेदन को प्रोसेस किया, लेकिन उनका ऑनलाइन आवेदन आगे नहीं बढ़ पाया। अब अधिकारियों ने उन्हें धार के जिला कलेक्टर कार्यालय जाने के लिए कहा है, क्योंकि गांव के स्तर पर अब कुछ भी नहीं किया जा सकता। निसारपुर ब्लॉक के जनपद पंचायत सीईओ कंचन वास्केल स्वीकारते हैं कि कम्प्यूटर में गलती दिखी है। इसलिए जब भी उनका आवेदन किया जाता है सिस्टम एरर बताता है और कोई यह नहीं जानता कि यह एरर क्यों आ रहा है। अब जिला कलेक्टर प्रियंक मिश्रा ही एकमात्र आशा हैं, जिन्होंने प्राथमिकता के साथ मामले को दिखवाने का वादा किया है। अब दूसरा उदाहरण देखें। मुंबई एयरपोर्ट पर इस मंगलवार फ्लाइट संख्या एआई-2591 से इंदौर जा रहे सुरिंदर कौल एयर इंडिया काउंटर पर पहुंचे। उन्होंने अपना बैग सुपुर्द किया, बोर्डिंग पास लिया और उन्हें गेट नंबर 47ए पर जाने को कहा गया, जहां से अन्य यात्री विमान में सवार होने जा रहे थे। उन्होंने अपना बोर्डिंग पास लिया और गेट पर पहुंचे। लेकिन यहां पता चला कि सहयात्री इंदौर नहीं, बल्कि बेंगलुरु जा रहे हैं। घबराहट में उन्होंने अपना बोर्डिंग पास देखा और पता चला कि वास्तव में उनका बोर्डिंग पास बेंगलुरु का था, इंदौर का नहीं। इस पर नाम भी किसी अन्य यात्री किंतन देसाई का लिखा था। वह इधर-उधर भागे। बोर्डिंग स्टाफ ने गलती मानी, लेकिन कोई भी सहायता कर सकने में असमर्थता जताई, क्योंकि कौल के पास गलत बोर्डिंग पास था। कर्मचारियों ने उनसे वापस एयर इंडिया काउंटर पर जाने को कहा, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकते थे, क्योंकि एयरपोर्ट सुरक्षा में इसकी अनुमति लेने के लिए बहुत सारे प्रोटोकॉल होते हैं। अब बेंगलुरु का विमान सुबह 6.35 पर जा चुका था और इंदौर की फ्लाइट सुबह 7.40 पर उड़ने वाली थी। कॉल बड़े असहाय से थे। ईश्वर का शुक्र है कि उनके पास मोबाइल में ई. बोर्डिंग पास था, जिससे वह विमान में तो बैठ सके लेकिन अब भी वह अपने सामान को लेकर शंका में थे। सहयात्रियों के हंगामे के बाद एक वरिष्ठ कर्मचारी आया और उसने नया बोर्डिंग पास दिलाया। तब पता चला कि सामान तो पहले ही सही विमान में रख दिया गया था। इस प्रकार कौल इंदौर की फ्लाइट में चढ़ पाए। मैनेजर ने कम्प्यूटर की गड़बड़ी की जांच कराने का वादा किया। फंडा यह है कि कम्प्यूटर भले ही तेजी से काम करते हों, लेकिन उनमें खराबी हो सकती है। सिर्फ मानवीय बुद्धिमता ही इसे ठीक कर सकती है। यही कारण है कि आपके पास काम करने वाले लोगों में विश्लेषणात्मक बुद्धि वाले इंसान होने चाहिए।