मेघना पंत का कॉलम:युवा और आकर्षक दिखने की यह होड़ हमें कहां ले जा रही है?

मेघना पंत का कॉलम:युवा और आकर्षक दिखने की यह होड़ हमें कहां ले जा रही है?

Published at : 2025-07-09 00:30:00
मेरी एक दोस्त ने मुझसे कहा कि बूढ़ी और बदसूरत होकर मरने के बजाय मैं कम उम्र में ही मर जाना पसंद करूंगी। यकीन मानिए, उन्होंने यह बात मजाक में नहीं कही थी। अलबत्ता मैं दुआ करती हूं कि मैं गलत साबित होऊं। लेकिन आजकल देश में जवानी की तलाश करते-करते मर जाना एक दु:खद सच्चाई बन गई है। परफेक्ट, नौजवान, प्रासंगिक बने रहने का दबाव आज हर जगह है। इंफ्लुएंसर्स बहुत ही कैजुअल तरीके से ग्लूटाथिओन आईवी ड्रिप्स, विटामिन इंफ्यूशन, कोलॉजेन बूस्टर्स की बात करते हैं, जैसे कि जवानी को किसी इंजेक्शन के जरिए कायम रखा जा सकता हो। लेकिन शेफाली जरीवाला की मौत से यह सुनहरी तस्वीर चूर-चूर हो गई। उन्होंने खुद की रीब्रांडिंग वेलनेस और फिटनेस आइकॉन के रूप में की थी। उनके करीबी सूत्र उनकी मौत का कारण एंटी-एजिंग सप्लीमेंट्स और आईवी थैरेपीज़ को बता रहे हैं। वे सिर्फ 42 वर्ष की थीं। उनकी मौत ना सिर्फ दुखद है, बल्कि हमारे ​लिए एक चेतावनी भी है। क्योंकि जो ​कभी सेलेब्रिटीज़ के शगल हुआ करते थे- जैसे कि क्रायो फेशियल्स, फैट-फ्रीजिंग, प्लेसेंटा पील्स- वो चीजें अब आम लोगों की दिनचर्या में शामिल होती जा रही हैं। गृहणियां क्लोरोफिल पी रही हैं। पिता बन चुके लोग अंडर-आई फिलर करा रहे हैं और 20 साल के बच्चे चीक-स्कल्पटिंग के लिए ईएमआई भर रहे हैं। हमें अचानक पता चलता है कि किसी मशहूर बॉलीवुड हस्ती ने 30 किलो वजन कम कर लिया है। उनके डायटिशियन दावा करते हैं कि कभी बहुत वजनी रहे इस सेलेब्रिटी ने खानपान में बदलाव और अपनी इच्छाशक्ति के दम पर वजन कम किया है। वे हमें मूर्ख समझते हैं। सबको मालूम है कि ये ओजेम्पिक, विगोवी, मॉन्जारो की कारस्तानी है। या शायद, हम दर्शक, प्रशंसक और फॉलोअर्स सच में नासमझ ही हैं, क्योंकि हम इस फंतासी का आंखें मूंदकर पीछा कर रहे हैं। मेरी कई दोस्त क्लिनिकों के पते ऐसे भेजती हैं, जैसे स्पोटिफाई की प्लेलिस्ट्स शेयर कर रही हों। उन्हें अच्छे-से पता होता है कि कौन-सा डॉक्टर बहुत किफायती दामों पर आपकी आई-ब्रो को सुंदर बना सकता है। वेलनेस क्लिनिक उच्चस्तरीय सौंदर्यवर्धक उपचारों में बेहद सहजता से आईवी ड्रिप्स जैसी प्रक्रियाओं को जोड़ रहे हैं। इनकी सेवाएं अब सिर्फ स्वास्थ्य संबंधी ही नहीं रहीं, बल्कि वे सामाजिक प्रतिष्ठा से जुड़ गई हैं। क्रूर विडंबना है कि हम जिंदा दिखने के चक्कर में मौत के मुंह में जा रहे हैं। शेफाली की मौत से उस दुनिया में मातमी खामोशी पसर गई, जो कभी भी स्क्रॉल करना नहीं छोड़ती। अगले ही दिन शेफाली का इंस्टाग्राम उनकी फिटनेस संबंधी दिनचर्या को लेकर सवालों से भर गया। लेकिन किसी ने रुककर यह नहीं पूछा कि उन्हें इसकी क्या कीमत चुकानी पड़ी? यह कॉस्मेटिक प्रक्रियाओं के खिलाफ युद्ध का ऐलान नहीं है। अगर आपको अपने में कुछ बदलाव चाहिए तो आप करवा सकते हैं। लेकिन समस्या इससे गहरी है। जब सुंदरता युद्ध का ऐसा मैदान बन जाए, जहां सबसे बेहतर होना ही प्रासंगिक होने का पर्याय हो और उससे थोड़ा भी कमतर होने का मतलब सबकी आंखों से ओझल हो जाना हो तो मान लीजिए कि हम एक हारी हुई जंग लड़ रहे हैं। आखिर हमारे बच्चे भी यही सब सीख रहे हैं कि खूबसूरत दिखना ही सबकुछ है। स्वास्थ्य, बुद्धिमानी और यहां तक जीवन भी इसी के इर्द-गिर्द घूमता है। हमें याद रखना होगा कि उम्रदराज होने में कोई बुराई नहीं है। उलटे यह एक विशेषाधिकार है। क्योंकि आपकी उम्र न बढ़े, इसका एक ही विकल्प है- यह कि आपकी जिंदगी थम जाए। यही कारण है कि आज जो सबसे रैडिकल चीज हम कर सकते हैं, वो यह है कि हमें अपनी एजिंग से कोई कुंठा न हो। खासतौर पर महिलाओं के लिए यह ज्यादा जरूरी है कि वे गरिमापूर्ण ढंग से उम्रदराज हों, और सार्वजनिक रूप से, और गर्व के साथ। उम्र के बढ़ने की हम इतनी बड़ी कीमत न चुकाएं। क्योंकि जीवन के परिदृश्य से बाहर हो जाने से बेहतर है कि हम उम्रदराज होकर भी वास्तविक बने रहें।(ये लेखिका के अपने विचार हैं)